राजस्थान में कृषि एवं प्रमुख फसलें

राजस्थान की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका है। राज्य की लगभग तीन-चौथाई जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि और पशुपालन पर निर्भर है। मानसून की अनिश्चितता और असमान वितरण राजस्थान की कृषि को लगातार प्रभावित करते रहे हैं। राजस्थान भारत के कुल कृषि योग्य भूमि के 14.15% हिस्से पर खेती करता है।

राजस्थान में कृषि की प्रमुख विशेषताएँ

मानसून पर निर्भरता

राज्य की अधिकांश कृषि मानसूनी वर्षा पर आधारित है। इस कारण राजस्थान की कृषि को ‘मानसून का जुआ’ कहा जाता है। वर्षा की अनिश्चितता और असमान वितरण कृषि उत्पादन को सीधे प्रभावित करते हैं।

आर्थिक महत्व

कृषि राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और लोगों की आजीविका का प्रमुख स्रोत है। वर्ष 2024-25 में राज्य के सकल मूल्य वर्धन में कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र का योगदान लगभग 26.54% (स्थिर कीमतों पर) है।

फसल क्षेत्रफल में परिवर्तन

हाल के वर्षों में राजस्थान में विभिन्न फसलों के क्षेत्रफल में महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं:

  • खाद्यान्न फसलों का क्षेत्रफल घटकर 93.39 लाख हेक्टेयर (2023-24) हो गया है
  • तिलहनी फसलों का क्षेत्रफल बढ़कर 66.46 लाख हेक्टेयर (2023-24) हो गया है
  • दलहनी फसलों का क्षेत्रफल बढ़कर 54.63 लाख हेक्टेयर (2023-24) हो गया है

उत्पादकता में सुधार

पिछले दशक में राज्य में फसल उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। अनाज की उत्पादकता में 37.29%, दलहन में 36.59% और तिलहन में 26.66% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

सिंचाई सुविधाओं की स्थिति

राज्य के कुल कृषि योग्य भूमि का केवल 49% हिस्सा ही सिंचित है। सिंचाई सुविधाओं की कमी के कारण प्रति हेक्टेयर उत्पादकता अपेक्षाकृत कम है। राज्य के 302 खंडों में से अधिकांश भूजल की दृष्टि से ‘डार्क जोन’ में आते हैं।

कृषि से संबंधित महत्वपूर्ण आँकड़े

  • शुद्ध बोया गया क्षेत्रफल: 184.23 लाख हेक्टेयर (53.74%)
  • कुल बुवाई क्षेत्रफल (2022-23): 284.6 लाख हेक्टेयर
  • खरीफ बुवाई क्षेत्रफल: 165.60 लाख हेक्टेयर
  • रबी बुवाई क्षेत्रफल: 119.07 लाख हेक्टेयर
  • कुल कृषकों की संख्या: 1.36 लाख (देश का 11.46%)
  • औसत कृषि जोत: 2.73 हेक्टेयर (राष्ट्रीय औसत 1.08 हेक्टेयर)
  • खाद्यान्न उत्पादन (2023-24): 241.86 लाख मीट्रिक टन

कृषि पद्धतियाँ

शुष्क कृषि (बारानी कृषि)

यह कम पानी और वर्षा जल पर आधारित कृषि है। 50 सेमी से कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। राजस्थान के मरुस्थलीय जिलों में यही पद्धति प्रचलित है।

प्रमुख फसलें: बाजरा, ज्वार, ग्वार, मोठ

सिंचित कृषि पद्धति

इस पद्धति में नहरों, तालाबों, कुओं और बांधों आदि से सिंचाई की जाती है।

प्रमुख फसलें: गन्ना, कपास, गेहूँ, सरसों

आर्द्र कृषि

उपजाऊ और काली मिट्टी के क्षेत्रों में की जाती है। 100 सेमी से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उपयुक्त।

प्रमुख फसलें: चाय, कॉफी, काजू, नारियल, रबर

तर कृषि

ऐसी कृषि जिसमें फसल की जड़ों में वर्षभर पानी भरा रहता है।

प्रमुख फसलें: चावल, जूट, सिंघाड़ा

स्थानांतरित कृषि

आदिवासियों द्वारा वनों को जलाकर या काटकर भूमि को साफ करके की जाने वाली कृषि। इसे ‘वाल’ कृषि भी कहते हैं। राजस्थान में यह मुख्यतः भील जनजाति द्वारा दक्षिणी भागों में की जाती है।

फसल ऋतुएँ

खरीफ की फसलें (स्यालू)

बुवाई: जून-जुलाई

कटाई: सितंबर-अक्टूबर (दीपावली के समय)

बुवाई क्षेत्रफल: लगभग 150-165 लाख हेक्टेयर

प्रमुख फसलें: चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, कपास, गन्ना, मूँगफली, सोयाबीन, अरंडी, तिल, अरहर, उड़द, मूंग, मोठ, चवला, ग्वार

विशेषता: इसमें 60-65% खाद्यान्न, 10-15% तिलहन, 4% कपास और गन्ना तथा शेष 20-25% अन्य फसलें बोई जाती हैं। खरीफ के अंतर्गत 80-90% क्षेत्र में बारानी फसलें बोई जाती हैं।

रबी की फसलें (उनालू)

बुवाई: अक्टूबर-नवंबर

कटाई: मार्च-अप्रैल (होली के समय)

बुवाई क्षेत्रफल: लगभग 100-120 लाख हेक्टेयर (इसमें से लगभग 90 लाख हेक्टेयर सिंचित)

प्रमुख फसलें: गेहूँ, जौ, चना, मसूर, मटर, अलसी, सरसों, तारामीरा, सूरजमुखी, राई, जीरा, मेथी, धनिया, सौंफ, ईसबगोल

जायद फसलें (चौमासा)

समय: मार्च से जून के बीच

प्रमुख फसलें: तरबूज, खरबूज, ककड़ी, कंद और विभिन्न सब्जियाँ

प्रमुख खाद्यान्न फसलें

बाजरा (Pearl Millet)

बाजरा राजस्थान की सबसे महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। यह मूलतः अफ्रीकी पौधा है और इसे ‘गरीब का भोजन’ कहा जाता है। यह राज्य में सर्वाधिक क्षेत्रफल में बोई जाने वाली और सर्वाधिक सूखा सहन करने वाली फसल है।

  • राष्ट्रीय स्थिति: बाजरा उत्पादन में प्रथम स्थान (देश के कुल उत्पादन का 44.66%)
  • उपयुक्त मिट्टी: रेतीली बलुई मिट्टी
  • औसत वर्षा: 40-50 सेमी
  • तापमान: 10-20°C
  • प्रमुख उत्पादक जिले: बाड़मेर, अलवर, जयपुर, जोधपुर
  • अनुसंधान केंद्र: मंडोर (जोधपुर), गुड़ामालानी (बाड़मेर)
  • प्रमुख रोग: ग्रीन ईयर (हरित बाली), अरकट रोग, कंडुआ रोग

गेहूँ (Wheat)

गेहूँ रबी की प्रमुख खाद्यान्न फसल है और राजस्थान में सर्वाधिक उत्पादन वाली फसल है। यह फिलिस्तीनी पौधा है।

  • वर्षा आवश्यकता: 50-70 सेमी
  • प्रमुख उत्पादक जिले: हनुमानगढ़, गंगानगर, चित्तौड़गढ़, बूंदी, अलवर
  • विशेष: गंगानगर को ‘अन्न का कटोरा’ या ‘राजस्थान का अन्न भंडार’ कहा जाता है
  • प्रमुख प्रजातियाँ: ट्रिटिकम एस्टीवम (चपाती गेहूँ), ट्रिटिकम डुरूम (काठिया गेहूँ)
  • प्रमुख रोग: करजवा, चेपा, रतुआ, टुंडु रोग, काला कीट, स्मट रोग

मक्का (Maize)

मक्का को ‘अनाजों की रानी’ कहा जाता है। यह अमेरिकी पौधा है और खाद्य तथा चारा दोनों के रूप में उपयोगी है। इसकी हरी पत्तियों से साइलेज चारा बनाया जाता है।

  • प्रमुख उत्पादन क्षेत्र: अरावली पर्वतीय क्षेत्र और दक्षिणी राजस्थान (उदयपुर संभाग)
  • उपयुक्त मिट्टी: नाइट्रोजन व जीवाश्म बाहुल्य मिट्टी
  • तापमान: 25-35°C
  • औसत वर्षा: 50-80 सेमी
  • प्रमुख उत्पादक जिले: भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, उदयपुर, बांसवाड़ा
  • अनुसंधान केंद्र: बोरवट (बांसवाड़ा)
  • विशिष्ट मंडी: निम्बाहेड़ा (चित्तौड़गढ़)

चावल (Rice)

चावल के लिए चिकनी दोमट मिट्टी सर्वाधिक उपयुक्त होती है।

  • तापमान: 20-30°C
  • औसत वर्षा: 100-150 सेमी
  • प्रमुख उत्पादक जिले: बूंदी, हनुमानगढ़, कोटा, बारां
  • अनुसंधान केंद्र: बांसवाड़ा
  • विशेष: गंगानगर को ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है
  • प्रमुख रोग: भूरी-चित्ती, तनागलन, गंधीबग कीट

ज्वार (Sorghum)

ज्वार को ‘गरीब की रोटी’ कहते हैं। यह सूखा सहनशील फसल है इसलिए इसे ‘क्रोप कैमल’ भी कहते हैं। इसके तने से पशु चारा बनता है।

  • राष्ट्रीय स्थिति: तीसरा स्थान (देश के कुल उत्पादन का 14.87%)
  • प्रमुख उत्पादक जिले: अजमेर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, भरतपुर
  • अनुसंधान केंद्र: वल्लभनगर (उदयपुर) – 1970
  • उपयोग: बीयर व अल्कोहल निर्माण में

जौ (Barley)

जौ को ‘गरीब का अनाज’ कहा जाता है। इससे शराब व बीयर बनाई जाती है। यह मधुमेह रोग के उपचार में और पशु आहार के रूप में भी उपयोगी है। जौ का उपयोग ‘माल्ट’ उद्योग में भी किया जाता है।

  • जलवायु: शुष्क व अर्द्धशुष्क
  • प्रमुख उत्पादक जिले: गंगानगर, जयपुर, सीकर, भीलवाड़ा
  • प्रमुख रोग: पीली रोली, भूरी रोली, मोल्या, चित्ती, कंडवा

प्रमुख दलहनी फसलें

दलहनें भूमि को उर्वरता प्रदान करती हैं क्योंकि ये फसलें मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती हैं। दलहन उत्पादन में राजस्थान का देश में तीसरा स्थान है।

चना (Gram)

चना को ‘दालों का राजा’, ‘चिकपी’ या ‘बंगाल ग्राम’ भी कहते हैं। यह राजस्थान के सभी जिलों में उत्पादित की जाने वाली प्रमुख दलहन है। यह दलहनी फसलों में सर्वाधिक उत्पादन वाली फसल है।

  • राष्ट्रीय स्थिति: तीसरा स्थान (देश के कुल उत्पादन का 14.75%)
  • प्रमुख उत्पादक जिले: अजमेर, जयपुर, जैसलमेर, भीलवाड़ा
  • विशेषता: चने का अच्छा उत्पादन सर्दी की वर्षा (मावठ) पर निर्भर करता है
  • प्रमुख रोग: दीमक, फली छेदक, झुलसा, जड़गलन, उकठा, फुहरोट रोग

मूंग (Mung)

मूंग भूमि की उर्वरा शक्ति बनाए रखती है, इसलिए इसे ‘भूमि सुरक्षा फसल’ भी कहा जाता है।

  • राष्ट्रीय स्थिति: सर्वाधिक क्षेत्रफल व उत्पादन राजस्थान में
  • प्रमुख उत्पादक जिले: नागौर, जोधपुर, चुरू, पाली

मोठ (Moth Bean)

यह शुष्क व मरुस्थलीय क्षेत्र की फसल है तथा दलहनी फसलों में सर्वाधिक सूखा सहन करने वाली फसल है।

  • प्रमुख उत्पादक जिले: बाड़मेर, बीकानेर, चुरू, जोधपुर
  • विशेष: नोखा (बीकानेर) में एशिया की सबसे बड़ी मोठ मंडी स्थित है

उड़द (Black Gram)

उड़द की फसल भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए उपयोगी है।

  • प्रमुख उत्पादक जिले: बूंदी, टोंक, भीलवाड़ा, अजमेर

अरहर (Red Gram)

अरहर को ‘रेड ग्राम’, ‘लाल चना’ या ‘पिजन’ भी कहते हैं। राजस्थान में इसका उत्पादन नगण्य है।

  • प्रमुख उत्पादक जिले: बांसवाड़ा, उदयपुर, डूंगरपुर, प्रतापगढ़

जिलेवार महत्वपूर्ण तथ्य

भूमि उपयोग के आधार पर

  • सर्वाधिक शुद्ध बोया गया क्षेत्रफल: बाड़मेर (प्रथम), बीकानेर (द्वितीय)
  • न्यूनतम शुद्ध बोया गया क्षेत्रफल: राजसमंद (प्रथम), डूंगरपुर (द्वितीय)
  • सर्वाधिक सिंचित क्षेत्रफल: गंगानगर (84% सिंचित)
  • न्यूनतम सिंचित क्षेत्रफल: राजसमंद
  • न्यूनतम सिंचित प्रतिशत: चुरू (18%)
  • सर्वाधिक बंजर भूमि: जैसलमेर
  • न्यूनतम बंजर भूमि: हनुमानगढ़
  • सर्वाधिक पड़त भूमि: बाड़मेर, बीकानेर

उत्पादन के आधार पर

  • अनाज उत्पादन: अलवर (प्रथम)
  • दालों का उत्पादन: नागौर (प्रथम)
  • खाद्यान्न उत्पादन: जयपुर (प्रथम)
  • तिलहन उत्पादन: बीकानेर (प्रथम)
  • मसालों का उत्पादन: बारां (प्रथम)
  • फलों का उत्पादन: झालावाड़ (प्रथम)
  • फूलों का उत्पादन: अजमेर (प्रथम)

राष्ट्रीय स्तर पर राजस्थान की उपलब्धियाँ

राजस्थान प्रथम स्थान पर:

  • पौष्टिक अनाज (मोटे अनाज) का उत्पादन – 15.66%
  • बाजरा उत्पादन – 44.66%
  • सुगंधित पुष्प व औषधीय मसालों का उत्पादन
  • अलसी, तारामीरा, ग्वार, मोठ, मेथी, ईसबगोल, सरसों, मेहंदी, मूंग, सोनामुखी, जैतुन

राजस्थान द्वितीय स्थान पर:

  • मसालों का उत्पादन

राजस्थान तीसरे स्थान पर:

  • दलहन उत्पादन – 13.88%
  • चना उत्पादन – 14.75%
  • ज्वार उत्पादन – 14.87%

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